आरती >> श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (अयोध्याकाण्ड) श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (अयोध्याकाण्ड)गोस्वामी तुलसीदास
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भारत की सर्वाधिक प्रचलित रामायण। द्वितीय सोपान अयोध्याकाण्ड
दो०- राम राज अभिषेकु सुनि, हियँ हरषे नर नारि।
लगे सुमंगल सजन सब, बिधि अनुकूल बिचारि॥८॥
लगे सुमंगल सजन सब, बिधि अनुकूल बिचारि॥८॥
श्रीरामचन्द्रजी का राज्याभिषेक सुनकर सभी स्त्री-पुरुष हृदय
में हर्षित हो उठे और विधाता को अपने अनुकूल समझकर सब सुन्दर मङ्गल-साज सजाने
लगे॥८॥
तब नरनाहँ बसिष्ठु बोलाए।
रामधाम सिख देन पठाए।
गुर आगमनु सुनत रघुनाथा।
द्वार आइ पद नायउ माथा॥
रामधाम सिख देन पठाए।
गुर आगमनु सुनत रघुनाथा।
द्वार आइ पद नायउ माथा॥
तब राजा ने वसिष्ठजी को बुलाया और शिक्षा (समयोचित उपदेश) देने
के लिये श्रीरामचन्द्रजी के महल में भेजा। गुरु का आगमन सुनते ही
श्रीरघुनाथजी ने दरवाजे पर आकर उनके चरणों में मस्तक नवाया॥१॥
सादर अरघ देइ घर आने।
सोरह भाँति पूजि सनमाने॥
गहे चरन सिय सहित बहोरी।
बोले रामु कमल कर जोरी॥
सोरह भाँति पूजि सनमाने॥
गहे चरन सिय सहित बहोरी।
बोले रामु कमल कर जोरी॥
आदरपूर्वक अर्घ्य देकर उन्हें घर में लाये और षोडशोपचार से
पूजा करके उनका सम्मान किया। फिर सीताजीसहित उनके चरण स्पर्श किये और कमल के
समान दोनों हाथोंको जोड़कर श्रीरामजी बोले-॥२॥
सेवक सदन स्वामि आगमनू।
मंगल मूल अमंगल दमनू॥
तदपि उचित जनु बोलि सप्रीती।
पठइअ काज नाथ असि नीती।
मंगल मूल अमंगल दमनू॥
तदपि उचित जनु बोलि सप्रीती।
पठइअ काज नाथ असि नीती।
यद्यपि सेवकके घर स्वामीका पधारना मङ्गलोंका मूल और अमङ्गलोंका
नाश करनेवाला होता है, तथापि हे नाथ! उचित तो यही था कि प्रेमपूर्वक दासको ही
कार्यके लिये बुला भेजते; ऐसी ही नीति है।। ३॥
प्रभुता तजि प्रभु कीन्ह सनेहू।
भयउ पुनीत आजु यहु गेहू॥
आयसु होइ सो करौं गोसाईं।
सेवकु लहइ स्वामि सेवकाईं।
भयउ पुनीत आजु यहु गेहू॥
आयसु होइ सो करौं गोसाईं।
सेवकु लहइ स्वामि सेवकाईं।
परन्तु प्रभु (आप)-ने प्रभुता छोड़कर (स्वयं यहाँ पधारकर) जो
स्नेह किया, इससे आज यह घर पवित्र हो गया। हे गोसाईं ! [अब] जो आज्ञा हो, मैं
वही करूँ। स्वामी की सेवामें ही सेवक का लाभ है॥४॥
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- अयोध्याकाण्ड - मंगलाचरण 1
- अयोध्याकाण्ड - मंगलाचरण 2
- अयोध्याकाण्ड - मंगलाचरण 3
- अयोध्याकाण्ड - तुलसी विनय
- अयोध्याकाण्ड - अयोध्या में मंगल उत्सव
- अयोध्याकाण्ड - महाराज दशरथ के मन में राम के राज्याभिषेक का विचार
- अयोध्याकाण्ड - राज्याभिषेक की घोषणा
- अयोध्याकाण्ड - राज्याभिषेक के कार्य का शुभारम्भ
- अयोध्याकाण्ड - वशिष्ठ द्वारा राम के राज्याभिषेक की तैयारी
- अयोध्याकाण्ड - वशिष्ठ का राम को निर्देश
- अयोध्याकाण्ड - देवताओं की सरस्वती से प्रार्थना
- अयोध्याकाण्ड - सरस्वती का क्षोभ
- अयोध्याकाण्ड - मंथरा का माध्यम बनना
- अयोध्याकाण्ड - मंथरा कैकेयी संवाद
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मंथरा को झिड़कना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मंथरा को वर
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मंथरा को समझाना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी के मन में संदेह उपजना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी की आशंका बढ़ना
- अयोध्याकाण्ड - मंथरा का विष बोना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मन पलटना
- अयोध्याकाण्ड - कौशल्या पर दोष
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी पर स्वामिभक्ति दिखाना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का निश्चय दृढृ करवाना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी की ईर्ष्या
- अयोध्याकाण्ड - दशरथ का कैकेयी को आश्वासन
- अयोध्याकाण्ड - दशरथ का वचन दोहराना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का दोनों वर माँगना
अनुक्रम
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