आरती >> श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (अयोध्याकाण्ड) श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (अयोध्याकाण्ड)गोस्वामी तुलसीदास
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भारत की सर्वाधिक प्रचलित रामायण। द्वितीय सोपान अयोध्याकाण्ड
दो०- यह बिचारि नहिं करउँ हठ, झूठ सनेहु बढ़ाइ।
मानि मातु कर नात बलि, सुरति बिसरि जनि जाइ॥५६॥
मानि मातु कर नात बलि, सुरति बिसरि जनि जाइ॥५६॥
यह सोचकर झूठा स्नेह बढ़ाकर मैं हठ नहीं करती। बेटा ! मैं
बलैया लेती हूँ, माताका नाता मानकर मेरी सुध भूल न जाना॥५६॥
देव पितर सब तुम्हहि गोसाईं।
राखहुँ पलक नयन की नाईं।
अवधि अंबु प्रिय परिजन मीना।
तुम्ह करुनाकर धरम धुरीना॥
राखहुँ पलक नयन की नाईं।
अवधि अंबु प्रिय परिजन मीना।
तुम्ह करुनाकर धरम धुरीना॥
हे गोसाईं ! सब देव और पितर तुम्हारी वैसे ही रक्षा करें, जैसे पलकें आँखों की रक्षा करती हैं। तुम्हारे वनवास की अवधि (चौदह वर्ष) जल है, प्रियजन और कुटुम्बी मछली हैं। तुम दया की खान और धर्म की धुरी को धारण करने वाले हो॥१॥
अस बिचारि सोइ करहु उपाई।
सबहि जिअत जेहिं भेंटहु आई॥
जाहु सुखेन बनहि बलि जाऊँ।
करि अनाथ जन परिजन गाऊँ।
सबहि जिअत जेहिं भेंटहु आई॥
जाहु सुखेन बनहि बलि जाऊँ।
करि अनाथ जन परिजन गाऊँ।
ऐसा विचारकर वही उपाय करना जिसमें सबके जीते-जी तुम आ मिलो। मैं बलिहारी जाती हूँ, तुम सेवकों, परिवारवालों और नगरभरको अनाथ करके सुखपूर्वक वनको जाओ॥२॥
सब कर आजु सुकृत फल बीता।
भयउ कराल कालु बिपरीता॥
बहुबिधि बिलपि चरन लपटानी।
परम अभागिनि आपुहि जानी॥
भयउ कराल कालु बिपरीता॥
बहुबिधि बिलपि चरन लपटानी।
परम अभागिनि आपुहि जानी॥
आज सबके पुण्योंका फल पूरा हो गया! कठिन काल हमारे विपरीत हो गया। [इस प्रकार] बहुत विलाप करके और अपने को परम अभागिनी जानकर माता श्रीरामचन्द्रजी के चरणों में लिपट गयीं॥३॥
दारुन दुसह दाहु उर ब्यापा।
बरनि न जाहिं बिलाप कलापा॥
राम उठाइ मातु उर लाई।
कहि मृदु बचन बहुरि समुझाई।
बरनि न जाहिं बिलाप कलापा॥
राम उठाइ मातु उर लाई।
कहि मृदु बचन बहुरि समुझाई।
हृदयमें भयानक दुःसह संताप छा गया। उस समय के बहुविध विलापका वर्णन नहीं किया जा सकता। श्रीरामचन्द्रजीने माताको उठाकर हृदयसे लगा लिया और फिर कोमल वचन कहकर उन्हें समझाया।॥४॥
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- अयोध्याकाण्ड - मंगलाचरण 1
- अयोध्याकाण्ड - मंगलाचरण 2
- अयोध्याकाण्ड - मंगलाचरण 3
- अयोध्याकाण्ड - तुलसी विनय
- अयोध्याकाण्ड - अयोध्या में मंगल उत्सव
- अयोध्याकाण्ड - महाराज दशरथ के मन में राम के राज्याभिषेक का विचार
- अयोध्याकाण्ड - राज्याभिषेक की घोषणा
- अयोध्याकाण्ड - राज्याभिषेक के कार्य का शुभारम्भ
- अयोध्याकाण्ड - वशिष्ठ द्वारा राम के राज्याभिषेक की तैयारी
- अयोध्याकाण्ड - वशिष्ठ का राम को निर्देश
- अयोध्याकाण्ड - देवताओं की सरस्वती से प्रार्थना
- अयोध्याकाण्ड - सरस्वती का क्षोभ
- अयोध्याकाण्ड - मंथरा का माध्यम बनना
- अयोध्याकाण्ड - मंथरा कैकेयी संवाद
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मंथरा को झिड़कना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मंथरा को वर
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मंथरा को समझाना
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- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मन पलटना
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- अयोध्याकाण्ड - दशरथ का वचन दोहराना
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अनुक्रम
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