आरती >> श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (अयोध्याकाण्ड)

श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (अयोध्याकाण्ड)

गोस्वामी तुलसीदास

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :0
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 10
आईएसबीएन :

Like this Hindi book 0

भारत की सर्वाधिक प्रचलित रामायण। द्वितीय सोपान अयोध्याकाण्ड


दो०- लोभु न रामहि राजु कर, बहुत भरत पर प्रीति।
मैं बड़ छोट बिचारि जियँ, करत रहेउँ नृपनीति॥३१॥

रामको राज्यका लोभ नहीं है और भरतपर उनका बड़ा ही प्रेम है। मैं ही अपने मनमें बड़े-छोटेका विचार करके राजनीतिका पालन कर रहा था (बड़ेको राजतिलक देने जा रहा था)॥ ३१॥


राम सपथ सत कहउँ सुभाऊ।
राममातु कछु कहेउ न काऊ॥
मैं सबु कीन्ह तोहि बिनु पूँछे।
तेहि तें परेउ मनोरथु छूछे।


रामकी सौ बार सौगंध खाकर मैं स्वभावसे ही कहता हूँ कि रामकी माता (कौसल्या) ने [इस विषयमें] मुझसे कभी कुछ नहीं कहा। अवश्य ही मैंने तुमसे बिना पूछे यह सब किया। इसीसे मेरा मनोरथ खाली गया॥१॥


रिस परिहरु अब मंगल साजू।
कछु दिन गएँ भरत जुबराजू॥
एकहि बात मोहि दुखु लागा।
बर दूसर असमंजस मागा।।


अब क्रोध छोड़ दे और मङ्गल साज सजा। कुछ ही दिनों बाद भरत युवराज हो जायेंगे। एक ही बातका मुझे दुःख लगा कि तूने दूसरा वरदान बड़ी अड़चनका माँगा॥२॥


अजहूँ हृदउ जरत तेहि आँचा।
रिस परिहास कि साँचेहुँ साँचा।
कहु तजि रोषु राम अपराधू।
सबु कोउ कहइ रामु सुठि साधू॥


उसकी आँचसे अब भी मेरा हृदय जल रहा है। यह दिल्लगीमें, क्रोधमें अथवा सचमुच ही (वास्तवमें) सच्चा है? क्रोधको त्यागकर रामका अपराध तो बता। सब कोई तो कहते हैं कि राम बड़े ही साधु हैं॥३॥


तुहूँ सराहसि करसि सनेहू।
अब सुनि मोहि भयउ संदेहू॥
जासु सुभाउ अरिहि अनुकूला।
सो किमि करिहि मातु प्रतिकूला॥


तू स्वयं भी रामकी सराहना करती और उनपर स्नेह किया करती थी। अब यह सुनकर मुझे सन्देह हो गया है [कि तुम्हारी प्रशंसा और स्नेह कहीं झूठे तो न थे?] जिसका स्वभाव शत्रुको भी अनुकूल है, वह माताके प्रतिकूल आचरण क्योंकर करेगा?॥४॥

...पीछे | आगे....

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. अयोध्याकाण्ड - मंगलाचरण 1
  2. अयोध्याकाण्ड - मंगलाचरण 2
  3. अयोध्याकाण्ड - मंगलाचरण 3
  4. अयोध्याकाण्ड - तुलसी विनय
  5. अयोध्याकाण्ड - अयोध्या में मंगल उत्सव
  6. अयोध्याकाण्ड - महाराज दशरथ के मन में राम के राज्याभिषेक का विचार
  7. अयोध्याकाण्ड - राज्याभिषेक की घोषणा
  8. अयोध्याकाण्ड - राज्याभिषेक के कार्य का शुभारम्भ
  9. अयोध्याकाण्ड - वशिष्ठ द्वारा राम के राज्याभिषेक की तैयारी
  10. अयोध्याकाण्ड - वशिष्ठ का राम को निर्देश
  11. अयोध्याकाण्ड - देवताओं की सरस्वती से प्रार्थना
  12. अयोध्याकाण्ड - सरस्वती का क्षोभ
  13. अयोध्याकाण्ड - मंथरा का माध्यम बनना
  14. अयोध्याकाण्ड - मंथरा कैकेयी संवाद
  15. अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मंथरा को झिड़कना
  16. अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मंथरा को वर
  17. अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मंथरा को समझाना
  18. अयोध्याकाण्ड - कैकेयी के मन में संदेह उपजना
  19. अयोध्याकाण्ड - कैकेयी की आशंका बढ़ना
  20. अयोध्याकाण्ड - मंथरा का विष बोना
  21. अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मन पलटना
  22. अयोध्याकाण्ड - कौशल्या पर दोष
  23. अयोध्याकाण्ड - कैकेयी पर स्वामिभक्ति दिखाना
  24. अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का निश्चय दृढृ करवाना
  25. अयोध्याकाण्ड - कैकेयी की ईर्ष्या
  26. अयोध्याकाण्ड - दशरथ का कैकेयी को आश्वासन
  27. अयोध्याकाण्ड - दशरथ का वचन दोहराना
  28. अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का दोनों वर माँगना

लोगों की राय

No reviews for this book