आरती >> श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (अयोध्याकाण्ड) श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (अयोध्याकाण्ड)गोस्वामी तुलसीदास
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भारत की सर्वाधिक प्रचलित रामायण। द्वितीय सोपान अयोध्याकाण्ड
दो०- कवने अवसर का भयउ, गयउँ नारि बिस्वास।
जोग सिद्धि फल समय जिमि, जतिहि अबिद्या नास॥ २९॥
जोग सिद्धि फल समय जिमि, जतिहि अबिद्या नास॥ २९॥
किस अवसरपर क्या हो गया! स्त्रीका विश्वास करके मैं वैसे ही
मारा गया, जैसे योगकी सिद्धिरूपी फल मिलनेके समय योगीको अविद्या नष्ट कर देती
है॥ २९॥
एहि बिधि राउ मनहिं मन झाँखा।
देखि कुभाँति कुमति मन माखा॥
भरतु कि राउर पूत न होंही।
आनेहु मोल बेसाहि कि मोही॥
देखि कुभाँति कुमति मन माखा॥
भरतु कि राउर पूत न होंही।
आनेहु मोल बेसाहि कि मोही॥
इस प्रकार राजा मन-ही-मन झीख रहे हैं। राजाका ऐसा बुरा हाल
देखकर दुर्बुद्धि कैकेयी मनमें बुरी तरहसे क्रोधित हुई। [और बोली-] क्या भरत
आपके पुत्र नहीं हैं ? क्या मुझे आप दाम देकर खरीद लाये हैं ? (क्या मैं आपकी
विवाहिता पत्नी नहीं हूँ?)॥१॥
जो सुनि सरु अस लाग तुम्हारें।
काहे न बोलहु बचनु सँभारे॥
देहु उतरु अनु करहु कि नाहीं।
सत्यसंध तुम्ह रघुकुल माहीं।
काहे न बोलहु बचनु सँभारे॥
देहु उतरु अनु करहु कि नाहीं।
सत्यसंध तुम्ह रघुकुल माहीं।
जो मेरा वचन सुनते ही आपको बाण-सा लगा तो आप सोच-समझकर बात
क्यों नहीं कहते? उत्तर दीजिये-हाँ कीजिये, नहीं तो नाहीं कर दीजिये। आप
रघुवंशमें सत्य प्रतिज्ञावाले [प्रसिद्ध] हैं !॥२॥
देन कहेहु अब जनि बरु देहू।
तजहु सत्य जग अपजसु लेहू॥
सत्य सराहि कहेहु बरु देना।
जानेहु लेइहि मागि चबेना॥
तजहु सत्य जग अपजसु लेहू॥
सत्य सराहि कहेहु बरु देना।
जानेहु लेइहि मागि चबेना॥
आपने ही वर देनेको कहा था, अब भले ही न दीजिये। सत्यको छोड़
दीजिये और जगत्में अपयश लीजिये। सत्यकी बड़ी सराहना करके वर देनेको कहा था।
समझा था कि यह चबेना ही माँग लेगी!॥३॥
सिबि दधीचि बलि जो कछु भाषा।
तनु धनु तजेउ बचन पनु राखा॥
अति कटु बचन कहति कैकेई।
मानहुँ लोन जरे पर देई॥
तनु धनु तजेउ बचन पनु राखा॥
अति कटु बचन कहति कैकेई।
मानहुँ लोन जरे पर देई॥
राजा शिबि, दधीचि और बलिने जो कुछ कहा, शरीर और धन त्यागकर भी
उन्होंने अपने वचनकी प्रतिज्ञाको निबाहा। कैकेयी बहुत ही कड़वे वचन कह रही
है, मानो जलेपर नमक छिड़क रही हो॥४॥
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- अयोध्याकाण्ड - मंगलाचरण 1
- अयोध्याकाण्ड - मंगलाचरण 2
- अयोध्याकाण्ड - मंगलाचरण 3
- अयोध्याकाण्ड - तुलसी विनय
- अयोध्याकाण्ड - अयोध्या में मंगल उत्सव
- अयोध्याकाण्ड - महाराज दशरथ के मन में राम के राज्याभिषेक का विचार
- अयोध्याकाण्ड - राज्याभिषेक की घोषणा
- अयोध्याकाण्ड - राज्याभिषेक के कार्य का शुभारम्भ
- अयोध्याकाण्ड - वशिष्ठ द्वारा राम के राज्याभिषेक की तैयारी
- अयोध्याकाण्ड - वशिष्ठ का राम को निर्देश
- अयोध्याकाण्ड - देवताओं की सरस्वती से प्रार्थना
- अयोध्याकाण्ड - सरस्वती का क्षोभ
- अयोध्याकाण्ड - मंथरा का माध्यम बनना
- अयोध्याकाण्ड - मंथरा कैकेयी संवाद
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मंथरा को झिड़कना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मंथरा को वर
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मंथरा को समझाना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी के मन में संदेह उपजना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी की आशंका बढ़ना
- अयोध्याकाण्ड - मंथरा का विष बोना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मन पलटना
- अयोध्याकाण्ड - कौशल्या पर दोष
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी पर स्वामिभक्ति दिखाना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का निश्चय दृढृ करवाना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी की ईर्ष्या
- अयोध्याकाण्ड - दशरथ का कैकेयी को आश्वासन
- अयोध्याकाण्ड - दशरथ का वचन दोहराना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का दोनों वर माँगना
अनुक्रम
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