आरती >> श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (अयोध्याकाण्ड) श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (अयोध्याकाण्ड)गोस्वामी तुलसीदास
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भारत की सर्वाधिक प्रचलित रामायण। द्वितीय सोपान अयोध्याकाण्ड
कैकेयी-मन्थरा-संवाद
दो०- सभय रानि कह कहसि किन, कुसल रामु महिपालु।
लखनु भरतु रिपुदमनु सुनि, भा कुबरी उर सालु॥१३॥
लखनु भरतु रिपुदमनु सुनि, भा कुबरी उर सालु॥१३॥
तब रानीने डरकर कहा-अरी! कहती क्यों नहीं ? श्रीरामचन्द्र,
राजा, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न कुशलसे तो हैं ? यह सुनकर कुबरी मन्थराके
हृदयमें बड़ी ही पीड़ा हुई॥१३॥
कत सिख देइ हमहि कोउ माई।
गालु करब केहि कर बलु पाई॥
रामहि छाड़ि कुसल केहि आजू।
जेहि जनेसु देइ जुबराजू॥
गालु करब केहि कर बलु पाई॥
रामहि छाड़ि कुसल केहि आजू।
जेहि जनेसु देइ जुबराजू॥
[वह कहने लगी-] हे माई! हमें कोई क्यों सीख देगा और मैं किसका
बल पाकर गाल करूँगी (बढ़-बढ़कर बोलूँगी)। रामचन्द्रको छोड़कर आज और किसकी
कुशल है, जिन्हें राजा युवराज-पद दे रहे हैं॥१॥
भयउ कौसिलहि बिधि अति दाहिन।
देखत गरब रहत उर नाहिन॥
देखहु कस न जाइ सब सोभा।
जो अवलोकि मोर मनु छोभा॥
देखत गरब रहत उर नाहिन॥
देखहु कस न जाइ सब सोभा।
जो अवलोकि मोर मनु छोभा॥
आज कौसल्या को विधाता बहुत ही दाहिने (अनुकूल) हुए हैं; यह
देखकर उनके हृदय में गर्व समाता नहीं। तुम स्वयं जाकर सब शोभा क्यों नहीं देख
लेती, जिसे देखकर मेरे मनमें क्षोभ हुआ है॥२॥
पूतु बिदेस न सोचु तुम्हारें।
जानति हहु बस नाहु हमारे॥
नीद बहुत प्रिय सेज तुराई।
लखहु न भूप कपट चतुराई॥
जानति हहु बस नाहु हमारे॥
नीद बहुत प्रिय सेज तुराई।
लखहु न भूप कपट चतुराई॥
तुम्हारा पुत्र परदेश में है, तुम्हें कुछ सोच नहीं। जानती हो
कि स्वामी हमारे वश में है। तुम्हें तो तोशक-पलँगपर पड़े-पड़े नींद लेना ही
बहुत प्यारा लगता है, राजाकी कपटभरी चतुराई तुम नहीं देखती॥३॥
सुनि प्रिय बचन मलिन मनु जानी।
झुकी रानि अब रहु अरगानी॥
पुनि अस कबहुँ कहसि घरफोरी।
तब धरि जीभ कढ़ावउँ तोरी।
झुकी रानि अब रहु अरगानी॥
पुनि अस कबहुँ कहसि घरफोरी।
तब धरि जीभ कढ़ावउँ तोरी।
मन्थराके प्रिय वचन सुनकर किन्तु उसको मन की मैली जानकर रानी
झुककर (डाँटकर) बोली-बस, अब चुप रह घरफोड़ी कहीं की! जो फिर कभी ऐसा कहा तो
तेरी जीभ पकड़कर निकलवा लूँगी।॥ ४॥
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- अयोध्याकाण्ड - मंगलाचरण 1
- अयोध्याकाण्ड - मंगलाचरण 2
- अयोध्याकाण्ड - मंगलाचरण 3
- अयोध्याकाण्ड - तुलसी विनय
- अयोध्याकाण्ड - अयोध्या में मंगल उत्सव
- अयोध्याकाण्ड - महाराज दशरथ के मन में राम के राज्याभिषेक का विचार
- अयोध्याकाण्ड - राज्याभिषेक की घोषणा
- अयोध्याकाण्ड - राज्याभिषेक के कार्य का शुभारम्भ
- अयोध्याकाण्ड - वशिष्ठ द्वारा राम के राज्याभिषेक की तैयारी
- अयोध्याकाण्ड - वशिष्ठ का राम को निर्देश
- अयोध्याकाण्ड - देवताओं की सरस्वती से प्रार्थना
- अयोध्याकाण्ड - सरस्वती का क्षोभ
- अयोध्याकाण्ड - मंथरा का माध्यम बनना
- अयोध्याकाण्ड - मंथरा कैकेयी संवाद
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मंथरा को झिड़कना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मंथरा को वर
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मंथरा को समझाना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी के मन में संदेह उपजना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी की आशंका बढ़ना
- अयोध्याकाण्ड - मंथरा का विष बोना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मन पलटना
- अयोध्याकाण्ड - कौशल्या पर दोष
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी पर स्वामिभक्ति दिखाना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का निश्चय दृढृ करवाना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी की ईर्ष्या
- अयोध्याकाण्ड - दशरथ का कैकेयी को आश्वासन
- अयोध्याकाण्ड - दशरथ का वचन दोहराना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का दोनों वर माँगना
अनुक्रम
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