आरती >> श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (अयोध्याकाण्ड) श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (अयोध्याकाण्ड)गोस्वामी तुलसीदास
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भारत की सर्वाधिक प्रचलित रामायण। द्वितीय सोपान अयोध्याकाण्ड
दो०- तेहि अवसर आए लखन, मगन प्रेम आनंद।
सनमाने प्रिय बचन कहि, रघुकुल कैरव चंद॥१०॥
सनमाने प्रिय बचन कहि, रघुकुल कैरव चंद॥१०॥
उसी समय प्रेम और आनन्दमें मग्न लक्ष्मणजी आये। रघुकुलरूपी
कुमुदके खिलानेवाले चन्द्रमा श्रीरामचन्द्रजीने प्रिय वचन कहकर उनका सम्मान
किया॥१०।।
बाजहिं बाजने बिबिध बिधाना।
पुर प्रमोदु नहिं जाइ बखाना॥
भरत आगमनु सकल मनावहिं।
आवहुँ बेगि नयन फलु पावहिं॥
पुर प्रमोदु नहिं जाइ बखाना॥
भरत आगमनु सकल मनावहिं।
आवहुँ बेगि नयन फलु पावहिं॥
बहुत प्रकार के बाजे बज रहे हैं। नगरके अतिशय आनन्द का वर्णन
नहीं हो सकता। सब लोग भरतजीका आगमन मना रहे हैं और कह रहे हैं कि वे भी शीघ्र
आवें और [राज्याभिषेकका उत्सव देखकर] नेत्रों का फल प्राप्त करें॥१॥
हाट बाट घर गली अथाईं।
कहहिं परसपर लोग लोगाईं।
कालि लगन भलि केतिक बारा।
पूजिहि बिधि अभिलाषु हमारा॥
कहहिं परसपर लोग लोगाईं।
कालि लगन भलि केतिक बारा।
पूजिहि बिधि अभिलाषु हमारा॥
बाजार, रास्ते, घर, गली और चबूतरोंपर (जहाँ-तहाँ) पुरुष और
स्त्री आपस में यही कहते हैं कि कल वह शुभ लग्न (मुहूर्त) कितने समय है जब
विधाता हमारी अभिलाषा पूरी करेंगे॥२॥
कनक सिंघासन सीय समेता।
बैठहिं रामु होइ चित चेता॥
सकल कहहिं कब होइहि काली।
बिघन मनावहिं देव कुचाली॥
बैठहिं रामु होइ चित चेता॥
सकल कहहिं कब होइहि काली।
बिघन मनावहिं देव कुचाली॥
जब सीताजी सहित श्रीरामचन्द्रजी सुवर्ण के सिंहासन पर विराजेंगे
और हमारा मनचीता होगा (मन:कामना पूरी होगी)। इधर तो सब यह कह रहे हैं कि कल
कब होगा, उधर कुचक्री देवता विघ्न मना रहे हैं॥ ३॥
तिन्हहि सोहाइ न अवध बधावा।
चोरहि चंदिनि राति न भावा॥
सारद बोलि बिनय सुर करहीं।
बारहिं बार पाय लै परहीं।
चोरहि चंदिनि राति न भावा॥
सारद बोलि बिनय सुर करहीं।
बारहिं बार पाय लै परहीं।
उन्हें (देवताओंको) अवध के बधावे नहीं सुहाते, जैसे चोर को
चाँदनी रात नहीं भाती। सरस्वतीजी को बुलाकर देवता विनय कर रहे हैं और बार-बार
उनके पैरों को पकड़कर उनपर गिरते हैं॥४॥
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- अयोध्याकाण्ड - मंगलाचरण 1
- अयोध्याकाण्ड - मंगलाचरण 2
- अयोध्याकाण्ड - मंगलाचरण 3
- अयोध्याकाण्ड - तुलसी विनय
- अयोध्याकाण्ड - अयोध्या में मंगल उत्सव
- अयोध्याकाण्ड - महाराज दशरथ के मन में राम के राज्याभिषेक का विचार
- अयोध्याकाण्ड - राज्याभिषेक की घोषणा
- अयोध्याकाण्ड - राज्याभिषेक के कार्य का शुभारम्भ
- अयोध्याकाण्ड - वशिष्ठ द्वारा राम के राज्याभिषेक की तैयारी
- अयोध्याकाण्ड - वशिष्ठ का राम को निर्देश
- अयोध्याकाण्ड - देवताओं की सरस्वती से प्रार्थना
- अयोध्याकाण्ड - सरस्वती का क्षोभ
- अयोध्याकाण्ड - मंथरा का माध्यम बनना
- अयोध्याकाण्ड - मंथरा कैकेयी संवाद
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मंथरा को झिड़कना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मंथरा को वर
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मंथरा को समझाना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी के मन में संदेह उपजना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी की आशंका बढ़ना
- अयोध्याकाण्ड - मंथरा का विष बोना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मन पलटना
- अयोध्याकाण्ड - कौशल्या पर दोष
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी पर स्वामिभक्ति दिखाना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का निश्चय दृढृ करवाना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी की ईर्ष्या
- अयोध्याकाण्ड - दशरथ का कैकेयी को आश्वासन
- अयोध्याकाण्ड - दशरथ का वचन दोहराना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का दोनों वर माँगना
अनुक्रम
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