आरती >> श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (अयोध्याकाण्ड)

श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (अयोध्याकाण्ड)

गोस्वामी तुलसीदास

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :0
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 10
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भारत की सर्वाधिक प्रचलित रामायण। द्वितीय सोपान अयोध्याकाण्ड

श्री-भरत-शत्रुघ्न का आगमन और शोक



दो०- पुरजन मिलहिं न कहहिं कछु गर्वहिं जोहारहिं जाहिं।
भरत कुसल पूँछि न सकहिं भय बिषाद मन माहिं॥१५८॥


नगरके लोग मिलते हैं, पर कुछ कहते नहीं; गौंसे (चुपके-से) जोहार (वन्दना) करके चले जाते हैं। भरतजी भी किसी से कुशल नहीं पूछ सकते, क्योंकि उनके मन में भय और विषाद छा रहा है॥ १५८॥

हाट बाट नहिं जाइ निहारी।
जनु पुर दहँ दिसि लागि दवारी॥
आवत सुत सुनि कैकयनंदिनि।
हरषी रबिकुल जलरुह चंदिनि॥


बाजार और रास्ते देखे नहीं जाते। मानो नगरमें दसों दिशाओंमें दावाग्नि लगी है ! पुत्रको आते सुनकर सूर्यकुलरूपी कमलके लिये चाँदनीरूपी कैकेयी [बड़ी] हर्षित हुई।॥ १॥

सजि आरती मुदित उठि धाई।
द्वारेहिं भेटि भवन लेइ आई।
भरत दुखित परिवार निहारा।
मानहुँ तुहिन बनज बनु मारा॥


वह आरती सजाकर आनन्दमें भरकर उठ दौड़ी और दरवाजेपर ही मिलकर भरत शत्रुघ्नको महलमें ले आयी। भरतने सारे परिवारको दु:खी देखा। मानो कमलोंके वनको पाला मार गया हो॥२॥

कैकेई हरषित एहि भाँती।
मनहुँ मुदित दव लाइ किराती॥
सुतहि ससोच देखि मनु मारें।
पूँछति नैहर कुसल हमारें।


एक कैकेयी ही इस तरह हर्षित दीखती है मानो भीलनी जंगलमें आग लगाकर आनन्द में भर रही हो। पुत्र को सोचवश और मन मारे (बहुत उदास) देखकर वह पूछने लगी-हमारे नैहर में कुशल तो है?॥३॥

सकल कुसल कहि भरत सुनाई।
पूँछी निज कुल कुसल भलाई॥
कहु कहँ तात कहाँ सब माता।
कहँ सिय राम लखन प्रिय भ्राता॥


भरतजीने सब कुशल कह सुनायी। फिर अपने कुल की कुशल-क्षेम पूछी। [भरतजीने कहा--] कहो, पिताजी कहाँ हैं ? मेरी सब माताएँ कहाँ हैं ? सीताजी और मेरे प्यारे भाई राम-लक्ष्मण कहाँ हैं ?॥ ४॥

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    अनुक्रम

  1. अयोध्याकाण्ड - मंगलाचरण 1
  2. अयोध्याकाण्ड - मंगलाचरण 2
  3. अयोध्याकाण्ड - मंगलाचरण 3
  4. अयोध्याकाण्ड - तुलसी विनय
  5. अयोध्याकाण्ड - अयोध्या में मंगल उत्सव
  6. अयोध्याकाण्ड - महाराज दशरथ के मन में राम के राज्याभिषेक का विचार
  7. अयोध्याकाण्ड - राज्याभिषेक की घोषणा
  8. अयोध्याकाण्ड - राज्याभिषेक के कार्य का शुभारम्भ
  9. अयोध्याकाण्ड - वशिष्ठ द्वारा राम के राज्याभिषेक की तैयारी
  10. अयोध्याकाण्ड - वशिष्ठ का राम को निर्देश
  11. अयोध्याकाण्ड - देवताओं की सरस्वती से प्रार्थना
  12. अयोध्याकाण्ड - सरस्वती का क्षोभ
  13. अयोध्याकाण्ड - मंथरा का माध्यम बनना
  14. अयोध्याकाण्ड - मंथरा कैकेयी संवाद
  15. अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मंथरा को झिड़कना
  16. अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मंथरा को वर
  17. अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मंथरा को समझाना
  18. अयोध्याकाण्ड - कैकेयी के मन में संदेह उपजना
  19. अयोध्याकाण्ड - कैकेयी की आशंका बढ़ना
  20. अयोध्याकाण्ड - मंथरा का विष बोना
  21. अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मन पलटना
  22. अयोध्याकाण्ड - कौशल्या पर दोष
  23. अयोध्याकाण्ड - कैकेयी पर स्वामिभक्ति दिखाना
  24. अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का निश्चय दृढृ करवाना
  25. अयोध्याकाण्ड - कैकेयी की ईर्ष्या
  26. अयोध्याकाण्ड - दशरथ का कैकेयी को आश्वासन
  27. अयोध्याकाण्ड - दशरथ का वचन दोहराना
  28. अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का दोनों वर माँगना
  29. अयोध्याकाण्ड - दशरथ का सहमना

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